Sabhi Prakar ke Sharbat ke Fayde | Benefits of All Kind of Ayurvedik Sharbat

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शर्बत प्रकरण

वर्तमान समय में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में शर्बतों का प्रयोग काफी बढ़ रहा है। आज के यान्त्रिक युग में लोगों में शारीरिक श्रम करने की शक्ति काफी हद तक कम हो जाने के कारण उनकी प्रकृति बहुत सुकुमार हो गई है और इस कारण से रस रसायनों और भस्मों आदि के तीक्ष्ण प्रभाव को बिना किसी सौम्य अनुपान के सहन नहीं कर पाते हैं, ऐसी स्थिति में उनके लिए सौम्य अनुपान की योजना करना आवश्यक है। 

सौम्य अनुपान की दृष्टि से शर्बतों का उपयोग काफी सफल रहा है और यही मुख्य कारण है कि आज सभी चिकित्सक शर्बतों का प्रयोग कर अपना यश तथा चिकित्सापद्धति का सम्मान बढ़ा रहे हैं। शर्बतों के प्रयोग का प्रचार बढ़ने जनता की अभिरुचि ने भी पर्याप्त सहयोग दिया है। 

शर्बतों के अनुपान से दी हुई औषधि बड़े तथा युवा, 'स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी बड़ी रुचि के साथ सेवन करते हैं। कटु और कषाय स्वाद की औषधियों के स्वाद से औषधि लेने में अरुचि उत्पन्न हुए लोगों में भी औषधि को सेवन करने की रुचि जागृत करने की समस्या को हल करने में शर्बत के प्रयोग से काफी सफलता प्राप्त हुई है। कितने ही रोगों की चिकित्सा काढ़ों एवं आसवारिष्ट, चूर्ण, अवलेह आदि की तरह केवल शर्बत के प्रयोग से ही हो जाती है। सामान्यतः शर्बत स्वाद में मधुर और प्रकृति में सौम्य पेय होने के कारण सेवन करने में सुविधापूर्ण है।


औषधि-प्रयोग में काम आनेवाले शर्बत प्रायः वनस्पतियों के स्वरस, क्वाथ, अर्क और फलों के रस, चीनी, मिश्री आदि से बनाये जाते हैं। शर्बत न अधिक गाढ़ा और न पतला ही होना चाहिए। गाढ़े शर्बत बोतलों में जम जाते हैं और पतले शर्बत जल्दी खराब हो जाते हैं, जबकि ठीक बने हुए शर्बत बहुत समय तक रखे रहने पर भी खराब नहीं होते। कुछ लोग शर्बतों को बिगड़ने से बचाने के लिए उनमें विकृति निरोधक पदार्थ (Preventive Drugs) का सम्मिश्रण भी करते हैं।


यद्यपि ऐसा करना कोई बुरा नहीं है, किन्तु हमारी राय में ठीक विधि से बने शर्बत स्वयं ही विकृति निरोधक होते हैं। यही कारण है कि हमारे यहाँ आम, आँवला, सेब बिहीदाना आदि अनेक फलों की विकृति से बचाने के लिए चीनी के शर्बत अर्थात् चाशनी में रखने की विधि प्राचीन काल से चली आ रही है। इससे यही सिद्ध होता है कि शत में विकृति से स्वयं बचे रहने एवं दूसरे पदार्थ को बचाने का गुण प्राकृतिक रूप में विद्यमान है। 


शर्बत डेढ़तार की गाढ़ा चाशनी के होने चाहिए। आजकल द्रवपदार्थों की घनता (गाढ़ेपन) को नापने के घनता मापक यन्त्र भी बन गए हैं, जिनको हाइड्रोमीटर

(Hydrometer) कहते हैं। शर्बत की चाशनी को एक लम्बे नली जैसे कांच के ग्लास के 3/4 भाग तक भर कर उसमें हाइड्रोमीटर डालकर देखने से जितने नम्बर के अंक तक हाइड्रोमीटर चाशनी में डूब जायेगा, उतने ही नम्बर की चाशनी की घनता मानी जायेगी ।


शर्वतों की धनता गरम हालत में 1200 नम्बर से 1250 नम्बर तक तथा ठंढा होने पर 1250 से 1300 नम्बर तक रहनी चाहिए, इससे अधिक नम्बर की गाढ़ी चाशनी के शर्बत बोतलों में जम जाते हैं। शर्बतों को जमने से बचने के लिए कुछ लोग प्रति दस सेर चीनी में 3 माशा के हिसाब से फिटकरी का चूर्ण, चाशनी बनाते समय मिलाते हैं, किन्तु इससे शर्बतों के रंग में पीलापन आ जाता है। कितने ही लोग प्रति दस सेर चीनी में 9 माशे के हिसाब से निम्बूसत्व पीसकर चाशनी बनाते समय मिलाते हैं, इससे शर्बत के जमने से बचने के अतिरिक्त रंग-रूप में स्वच्छता और स्वाद में रोचकता भी आती है। 


शर्बत बनाने के काम में लिए जाने वाले स्वरस, क्वाथ, फलसर, जल, अर्क ये ताजे लेने चाहिए, चीनी साफ अच्छी मिठासदार, सफेद रंग की एवं मोटे दाने की लेने चाहिए। मोटे दाने की चीनी में मैल बहुत कम निकलता है। शर्बत की चाशनी बनाते समय मिलाये गये निम्बुसत्व में चीनी का मैल का गुण भी होता है। कुछ लोग चाशनी बनाते समय उसमें पानी मिले हुए दूध के छींटे 3-4 बार दे-देकर भी चाशनी का मैल साफ करते हैं। 


ऐसा करने से चाशनी में जितना भी मैल होगा वह चाशनी के ऊपर आकर थर की तरह जमा हो जाता है, उसे लोहे के झारे से सावधानीपूर्वक बाहर निकालकर फेंक देना चाहिए। शर्बत बनाने और छानकर रखने के लिए पात्र ताम्बा या पीतल के बने रांगा की कलई किये हुए या स्टेनलेस के बने होने चाहिए । शर्बत

को ठण्डा हो जाने पर मोटे कपड़े या फिल्टर से छानकर, साफ धोकर अच्छी तरह सुखाई हुई शीशी - बोतलों में भरकर कार्क लगाकर मोम या चमड़े की सील लगा दें अथवा बोतल चूड़ीदार मुँह की हो तो फिल्टरप्रूफ कैप (ढक्कन) लगाकर मशीन से कस देना चाहिए | 

पश्चात् बोतलों पर जिस चीज का शर्बत हो उसके नाम के अथवा कई चीजों के सम्मिश्रण से बना शर्बत हो तो उस शर्बत का जो नाम हो उसके लेबिल लगा देने चाहिए । शर्बतों को अधिक समय तक सुरक्षित बने रहने के लिए यह ध्यान रखना चाहिए कि उनको गरम स्थान में न रखा जाये।


शर्बतों में रंग अथवा सुगन्धि (खुशबू - ऐसन्स आदि) मिलानी हो तो गरम में नहीं मिलानी चाहिए। ठण्डा होने के पश्चात् शीशी बोतलों में भरते समय मिलाकर तुरन्त शीशी - बोतलों में भरकर पैक कर देना चाहिए। रंग और ऐसन्स इत्र आदि खुशबू देने के गुणों की दृष्टि से कोई विशेष आवश्यकता नहीं है। किन्तु उनको आकर्षक और उत्तम वर्ण के बनाने के लिए रंग तथा खुशबू देना उपयुक्त है।


आजकल बहुत से लोग सेक्रीन (चीनी का सत्व) आदि हानिकर द्रव्यों का इस्तेमाल करके सस्ते शर्बत भी बनाते देखे जाते हैं। अतः चिकित्सकों एवं जनता को शर्बतों को खरीदते समय उनकी उत्तमता का विचार करते हुए प्रामाणिक निर्माण संस्था द्वारा बनाये गये शर्बतों को ही

लेकर व्यवहार करना चाहिए।


अडूसा (वासा) शर्बत

अडूसा मूल

छाल 1 सेर को आठ सेर जल में पकाकर चतुर्थांश क्वाथ शेष बचने पर मोटे कपड़े या फिल्टर से छानकर, पुनः साफ कलईदार कड़ाही या भगोना आदि में डालकर, 4 सेर चीनी मिलाकर यथाविधि शर्बत तैयार करके ठण्डा होने पर छानकर शीशियों में भरकर लेबिल लगाकर रख लें। - प्रचलित शर्बत निर्माण विधि से


मात्रा और अनुपान

2 तोला से 4 तोला तक दिन-रात में 2-3 बार समान भाग जल मिलाकर दें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत खाँसी, श्वास (दमा), प्रतिश्याय ( जुकाम), रक्त-पित्त, रक्तप्रदर, रक्तार्श आदि रोगों में स्वतन्त्र रूप से अथवा औषधियों के अनुपान रूप से प्रयोग करने से उत्तम गुण करता है।



उन्नाव का शर्बत

उन्नाव (असली) आधा सेर को जरा-सा कूटकर दो सेर पानी में पकाकर एक सेर पानी शेष रहने पर मोटे कपड़े से छानकर तीन सेर चीनी डालकर यथाविधि शर्बत तैयार करके छानकर साफ शीशियों में भरकर लेबिल लगाकर रख लें। -सि. भै.म.मा.


मात्रा और अनुपान

2 तोला से 4 तोला तक पानी में मिलाकर प्रातः - सायं पिलावें ।


गुण और उपयोग

क्षय, खाँसी में कफ के साथ खून निकलना,  रक्त-पित्त, यौवन पिडिकायें(Small Pimples), मुंहांसे, पित्तविकार आदि में बहुत श्रेष्ठ गुणकारी है । यह त्वचा के वर्ण को निखारता है। मुखमण्डल को कान्तियुक्त बना देता है। स्वाद में सुमधुर एवं स्वादिष्ट है ।



गावजवान शर्बत

गावजवान 3 तोला 9 माशा, बिल्ली लोटन 1 तोला 1 माशा, गुलाब के फूल, सफेद चन्दन का बुरादा, बालछड़, छड़ीला - ये प्रत्येक 10 माशा सबको अर्क गुलाब आधा सेर और वर्षाजल आधा सेर में पकाकर तीन पाव जल शेष रहने पर छानकर 1  सेर चीनी डालकर यथाविधि शर्बत बनाकर इसमें प्रति तोला शर्बत में 1 रत्ती के हिसाब से क्लोवजहाइड्रेट में घोलकर मिला दें पश्चात् शीशियों में भर कर रख दें। - यू.सि.यो.सं. से किंचित् परिवर्तित


मात्रा और अनुपान

2 से 4 तोला तक अकेले या गावजवान अर्क आदि में मिलाकर प्रातः सायं पिलावें।


गुण और उपयोग

क्लम(Weakness of Heart), थकावट और चिन्ता के कारण या ज्वर की प्रारम्भिक अवस्था में अनिद्रा का विकार हो जाय तो इस शर्बत का उपयोग असीम गुणकारी सिद्ध होता है। इससे गहरी निद्रा आती है और दिमाग को बहुत आराम मिलता है। यह वेदना को शमन करता है। धनुर्वात, मृगी , अपतन्त्रक आदि आक्षेपयुक्त व्याधियों में भी इससे उत्तम उपकार होता है।



अनार का शर्बत

मीठे अनार (बेदाना) का रस एक सेर को इतना पकायें कि यह आधा सेर रह जाये, फिर उसमें आधा सेर जल और चीनी 2 सेर मिलाकर यथाविधि शर्बत बनाकर ठंडा होने पर मोटे कपड़े से छानकर उसमें खाने का तरल गुलाबी रंग तथा अनार का ऐसन्स मिलाकर शीशियों भरकर रख लें। - यू. सि. यो. सं. से किंचित् परिवर्तित


मात्रा और अनुपान

3 तोला से 5 तोला तक समान भाग जल से मिलाकर दिन रात में 2-3 बार अथवा आवश्यकतानुसार पिलावें ।


गुण और उपयोग

यह मन को प्रसन्न रखने वाला, प्यास को मिटाने वाला, गर्मी अर्थात् दाह को शान्त करने वाला, श्रम अर्थात् थकावट को मिटाने वाला, दीपन - पाचन, सुमधुर और रुचिवर्द्धक एवं पीने में अत्यन्त जायकेदार है। बहुत से लोग गर्मी के मौसम में स्वयं तथा परिवार के लोगों के लिए व्यवहार करते हैं।



केवड़ा का शर्बत

केवड़ा का जल एक पाव, जल एक सेर, चीनी 211 सेर, साइट्रिक एसिड 15 रत्ती से शर्बत तैयार कर लें। ठंडा होने पर छानकर खाने का हरा रंग (तरल) यथा आवश्यक मिलाकर तथा ऐसन्स केवड़ा आवश्यकतानुसार देकर साफ शीशियों में भर करके रख लें। - प्रचलित शर्बत निर्माण - विधि


मात्रा और अनुपान

2 तोला से 5 तोला तक को एक गिलास पानी में मिलाकर पीयें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत पीने में अत्यन्त जायकेदार, सुमधुर तथा मन को प्रसन्न करने वाला, रुचिवर्द्धक, दीपन तथा पाचन है । आमाशय को शान्ति प्रदान करने वाला, पेशाब साफ लानेवाला, शारीरिक तथा मानसिक थकावट को मिटाने वाला और मस्तिष्क को शान्ति प्रदान करनेवाला है। प्यास को मिटाकर तृप्ति तथा आनन्ददायक है । अन्तर्दाह, मूत्रकृच्छ्र और ग्लानि को दूर करता है



खस का शर्बत

अर्क खश एक पाव, जल एक सेर, चीनी 2 सेर तथा निम्बूसत्व 15 रत्ती मिलाकर यथाविधि शर्बत तैयार कर लें। ठण्डा होने पर मोटे कपड़े से छानकर आवश्यकतानुसार तथा खाने का तरल हरा रंग एवं ऐसन्स खस आवश्यकतानुसार मिलाकर शीशियों में भर करके रखें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत अत्यन्त जायकेदार तथा सुमधुर है। प्यास अन्तर्दाह, पेशाब में जलन, मूत्रकृच्छ्र, श्रम, ग्लानि तथा शारीरिक और मानसिक थकावट को मिटानेवाला, तृप्तिकारक तथा आनन्ददायक है। रक्त-पित्त, पित्तज्वर, पित्तविकार, आँखों में लाली तथा जलन रहना आदि को भी नष्ट करता है। कितने ही लोग गर्मी के मौसम में अपने स्वयं के तथा परिवार के लिए इसका नित्य व्यवहार करते हैं।



गिलोय का शर्बत

1 – ताजा गिलोय का रस एक सेर को आग पर इतना पकायें कि वह आधा सेर रह जाये। पश्चात् उसमें पानी एक सेर और चीनी 3 सेर मिलाकर यथाविधि शर्बत बनाकर ठंडा होने पर शीशियों में भर करके रख लें।

2 – आधा सेर गिलोय को कूटकर अठगुने जल में पकाकर एक सेर क्वाथ बचने पर छानकर उसमें अथवा गिलोय अर्क एक सेर में दो सेर चीनी मिलाकर यथाविधि शर्बत बनाकर शीशियों में भरकर रख लें ।


मात्रा और अनुपान

2 से 4 तोला को चौगुने पानी में मिलाकर सुबह-शाम पिलावें ।


गुण और उपयोग

यह शर्बत सब प्रकार के ज्वरों को मिटाने वाला, ज्वर के बढ़े हुए वेग को कम करने वाला, पित्त विकार, पेशाब की जलन, हृदय तथा छाती की जलन, आँखों में जलन तथा सुख मूत्रकृच्छ्र, वातरक्त(Uric Acid), हलीमकरक्त-पित्तजीर्णज्वर, धातुगत ज्वर, प्यास की अधिकता, दुर्गन्धियुक्त पसीना निकलना, पूयमेह (सूजाक ), प्रमेह आदि विकारों को नष्ट करने में अत्यन्त उपयोगी है।



गुड़हल का शर्बत

एनामेल के या कलईदार बर्तन या चीनी मिट्टी के इमरतवान में एक पाव निम्बू के रस में जवा पुष्प (ताजा) 100 नग को छोटे-छोटे टुकड़े करके भिंगो दें। दूसरे दिन सुबह ऊपर नितरा हुआ जल (रस) निकाल लें। फिर उसमें 2 सेर पानी तथा 2 सेर चीनी मिलाकर चाशनी करके बोतलों में आधा-आधा भरकर अच्छी तरह कार्क लगाकर पानी के टब या मटके 3-4 दिन तक डालकर रखें। पश्चात् निकाल कर, छानकर अन्य बोतलों में भरकर रखें। - यू. सि. यो. सं. से किंचित्प रिवर्तित


2 - गुलाब जल 10 तोले, केवड़ा अर्क 10 तोले, जल 30 तोले, चीनी 30 तोले, कागजी निम्बू 5 नग का रस और गुड़हल (जवा) की छाल अथवा पुष्प 2 ।। तोला – इन सब चीजों को दो बोतलों में भरकर अच्छी तरह मुँह बन्द करके (कार्क लगाकर ) 3 दिन तक पानी में डुबाकर रखें पश्चात् निकाल कर छान कर दूसरी बोतलों में भरकर रखें। -आ. प्र.


मात्रा और अनुपान

1 से 2 तोला तक शर्बत को पानी 12 तोला या अर्क गावजवान से मिलाकर पिलावें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत रक्त-पित्त, हृदय की धड़कन बढ़ा संताप, अन्तर्दाह, पेशाब की जलन, मूत्रकृच्छ्र, दिल की धड़कन आदि विकारों में उत्तम गुणकारी है। यह हृदय को उल्लसित करता एवं मन को शान्तिदायक है।



गुलवनफ्सा का शर्बत

गुलवनफ्सा अर्क 2 पौंड, जल 8 पौंड, चीनी 10 सेर, साइट्रिक एसिड (निम्बू सत्व) 2 ड्राम मिलाकर यथाविधि शर्बत बनाकर ठंडा होने पर छानकर शीशियों में भरकर रख लें। कुछ लोग इसमें खाने का हरा तरल रंग भी हरा होने योग्य मिलाते हैं।


मात्रा और अनुपान

2 तोला से 4 तोला तक को चौगुने पानी में मिलाकर अकेले या कफनाशक दवाओं के अनुपानरूप में व्यवहार करें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत खाँसी, श्वास, प्रतिश्याय ( जुकाम), नजला, दिल की धड़कन, मानसिक अशान्ति, ज्वर, ज्वरान्त दौर्बल्य आदि विकारों में सुप्रसिद्ध महौषधि है। सूखी खाँसी आने तथा क्षय में खाँसी के साथ कफ में खून आने पर प्रवाल पिष्टी 2 रत्ती और सितोपलादि चूर्ण 1 माशा, अभ्रक भस्म 1 रत्ती - इन सबको मिलाकर मधु के स्थान पर इस शर्बत में मिलाकर चाटने से बहुत उत्तम लाभ होता है। जुकाम और खाँसी की यह सुप्रसिद्ध महौषधि हैं। 


गुलाब का शर्बत

1- गुलाब का जल 1 सेर में चीनी 11। सेर मिलाकर शर्बत बनाकर तुरन्त छानकर रख लें। - र.त.सा.

2- गुलाब का जल 1 सेर, चीनी 211 सेर, साइट्रिक एसिड (निम्बू सत्व) आधा ड्राम मिलाकर शर्बत बना लें। खाने का गुलाबी तरल रंग आवश्यकतानुसार और गुलाब की खुशबू मिलाकर छानकर शीशियों में भर लें।


मात्रा और अनुपान

2 से 5 तोला तक एक गिलास पानी में मिलाकर दिन-रात में 2-3 बार आवश्यकतानुसार पिलावें ।


गुण और उपयोग

यह शर्बत अत्यन्त सुमधुर और जायकेदार है। प्यास की अधिकता, अन्तर्दाह, थकावट, ग्लानि, अवसाद, भ्रम, चित्त की अस्थिरता, पेशाब की जलन, मूत्रकृच्छ्र, आँखों की जलन तथा सुख आदि विकारों को दूर करता है। कितने लोग गर्मी के मौसम में इसका नित्य सेवन कर गर्मी की अधिकता से होने वाले विकारों बचे रहते हैं।



चन्दन का शर्बत

(1) आधा पाव श्वेत चन्दन के बुरादा को आधा सेर गुलाब के जल में रात को भिंगो दें। सबेरे हल्का-सा जोश देकर (उबाल कर ) डेढ़ पाव जल शेष रहने पर मलकर छान लें, फिर आधा सेर मिश्री मिलाकर शर्बत बना लें। उबालते समय ढक्कन लगा दें, अन्यथा तैल उड़ जाता है। --र. त. सा.

(2) चन्दन सफेद का अर्क एक पाव, जल एक सेर, चीनी 211 सेर, निम्बू सत्व 15 रत्ती मिलाकर शर्बत बना लें। खाने का पीला रंग और खुशबू आवश्यकतानुसार देकर शीशियों में भर लें।


मात्रा और अनुपान

2 से 5 तोला तक आवश्यकतानुसार जल मिलाकर पिलावें ।


गुण और उपयोग

यह शर्बत सुमधुर और अतीव श्रेष्ठ, जायकेदार, शीतवीर्य और दिल तथा दिमाग को तरावट पहुँचाने वाला है। अन्तर्दाह, प्यास की अधिकता, क्लान्ति, अवसाद, भ्रम, मूर्च्छा, पेशाब लाल या पीला होना, जलन के साथ होना, नाक और मुँह में खुश्की रहना, रक्त-पित्त, बढ़ा हुआ ज्वर का वेग, पित्त विकार, गर्मी के दिनों में होनेवाले विकार, सूजाक आदि में उत्तम गुणकारी है । बहुत-से लोग गर्मी के दिनों में इसका नित्य प्रयोग करते हैं।



जूफा का शर्बत

मुनक्का 30 तोला, उन्नाव 20 तोला, सापिस्तान 20 तोला, अंजीर 20 तोला, बेख सोसन 30 तोला, मुलेठी 20 तोला, सौंफ की जड़ 10 तोला, बेखकर्फस 10 तोला, जूफा 10 तोला, हंसराज 10 तोला बिहीदाना 5 तोला, अनीसून 5 तोला, सौंफ 5 तोला, जौ छिले हुए 5 तोला, अलसी 5 तोला, जटामांसी 5 तोला, गावजवान 5 तोला, खतमी के बीज 5 तोला सब को जौकुट करके 3 गुने जल में रात को भिंगो दें। सुबह मन्द आँच पर पका कर एक तिहाई जल शेष रहने पर ठण्डा करके कपड़े से छान लें। पीछे उसमें 6 सेर चीनी मिला कर शर्बत बना लें। ठण्डा होने पर छान कर बोतलों में भर लें। - सि. यो. सं.


मात्रा और अनुपान

1 से 2 तोला शर्बत, उतना ही जल मिलाकर दिन में दो बार यथावश्यक दें।


गुण और उपयोग

सब प्रकार की खाँसी में विशेषतः वात और पित्त प्रधान खाँसी में इसका विशेष प्रयोग होता है। इससे छाती में जमा हुआ कफ ढीला हो कर खाँसने के साथ ही तुरन्त गिर जाता हैश्वास रोग में भी उत्तम लाभकारी है।



नीलोफर का शर्बत

नीलोफर के पुष्प 10 तोला को एक सेर जल में रात्रि को भिंगो दें। सुबह पका कर सेर शेष रहने पर छान कर एक सेर चीनी डालकर शर्बत ठंडा होने पर बोतलों में भर कर रख लें। - यू. सि. यो. सं. के आधार पर


मात्रा और अनुपान

1 तोला शर्बत शीतल जल या गावजवान अर्क 12 तोला में मिला कर दें। 


गुण और उपयोग

यह पित्त की तीक्ष्णता को कम करता तथा पिपासा और संताप का शमन करता है। हृदय को बल प्रदान करता है।अन्तर्दाह गर्मी तथा पित्तविकारों और रक्त पित्त तथा शुष्क कास में उत्तम गुणकारी है।



नींबू का शर्बत

नींबू के रस में 2 गुनी चीनी (शक्कर) की चाशनी बना लें, फिर गरम-गरम को ही छान लें (ठंडा होने पर नहीं छनता)। -र. त. सा. 


मात्रा और अनुपान

1-2 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिलाकर पीवें ।


गुण और उपयोग

इस शर्बत के सेवन से पित्त विकार, मन्दाग्नि, अरुचि, तृषा, उबाक, अजीर्ण, मलावरोध, रक्तदोष आदि दूर होते हैं, अग्नि प्रदीप्त होती है। गर्मी में सूर्य ताप (धूप) में घूमने से उत्पन्न व्याकुलता और पित्त प्रकोप सत्वर दूर होते हैं । सन्ताप तथा दाह शान्त होता है। मन प्रसन्न रहता है, थकावट दूर होती है ।


संतरा का शर्बत

संतरा मीठा (पका हुआ) के रस में 21। गुनी चीनी की चाशनी बना कर गरम-गरम को छान लें। ठंडा होने पर बोतलों में भर लें। - र.त.सा. की नींबू शर्बत विधि से


मात्रा और अनुपान 

2 से 4 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिला कर दिन में 2-3 बार दें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत अत्यन्त जायकेदार, मन को प्रसन्न करने वाला, थकावट मिटाने वाला, प्यास, दाह, क्लान्ति, अवसाद को मिटाने वाला है। दीपन - पाचन एवं बल तथा खून को बढ़ाने वाला और त्वचा के वर्ण को निखारता है ।



वनप्सा का शर्बत

वनसा पत्ती को आठगुने जल में भिंगोकर सुबह चूल्हे पर पका कर अष्टमांश जल शेष रहने पर मोटे कपड़े से छान कर क्वाथ से चार गुना चीनी या मिश्री डाल कर शर्बत तैयार कर लें, ठंडा होने पर छान कर बोतलों में भर लें। - सि. भै. म. मा.


मात्रा और अनुपान

2 से 4 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिला कर दिन में 2-2 बार दें।


गुण और उपयोग

यब शर्बत सौम्य और पित्तशामक होने से पित्तज्वर, शुष्क कास, बिगड़ा हुआ जुकाम, तीक्ष्ण दवाओं के प्रयोग से छाती में कफ के सूख कर जम जाने पर बहुत उत्तम गुण करता है। तमक श्वास में भी इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है। 



बेल का शर्बत

बेल के ताजे पके हुए फलों का गूदा आधा सेर को 2 सेर पानी में आग पर पका कर एक सेर पानी शेष रहने पर छान कर 2 सेर चीनी डाल कर शर्बत बना कर ठंडा होने पर छान कर बोतलों में भर दें। - प्रचलित शर्बत विधि से


मात्रा और अनुपान

2 से 4 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिला कर दिन में 2-3 बार दें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत प्रवाहिका, अतिसार , विशेषतः रक्तातिसार, संग्रहणी , आमदोष, खूनी बवासीर , रक्तप्रदर , पुराना कब्ज, मानसिक सन्ताप, अवसाद, भ्रम, मूर्च्छा तथा क्लम को नष्ट करता है। हृदय को उत्तम बल प्रदान करता है। यह रस - रक्तादि धातुवर्द्धक है।



ब्राह्मी का शर्बत  

ब्राह्मी 2 छटाँक, शंखपुष्पी आधा छटाँक, दोनों को सायंकाल 3 सेर आधा पाव जल में भिंगो दें। प्रातः चूल्हे पर पका कर 2 सेर पानी शेष रहने पर छान कर 5 सेर चीनी और 30 रत्ती निम्बूसत्व डाल कर शर्बत बना लें, ठंडा होने पर छान कर बोतलों में भर कर रख लें। इसमें खाने का हरा रंग तरल 1 या आधा ड्राम भी आवश्यकतानुसार मिला सकते हैं। इससे रंग अच्छा हो जाता है। - प्रचलित शर्बत विधि से


मात्रा और अनुपान

1 से 2 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिला कर दिन में 2-3 बार दें ।


गुण और उपयोग

यह शर्बत दिमागी कमजोरी, उन्माद, अपस्मार, हिस्टीरिया, मूर्च्छा, याददास्त की कमी, सिर-दर्द, मानसिक दुर्बलता, स्नायु दौर्बल्य आदि विकारों को नष्ट करने में अतीव गुणकारी है। स्मरण-शक्ति को बढ़ाने और दिमाग को पुष्ट करने में सुप्रसिद्ध है। यह गर्मी को शान्त करता और चित्त-भ्रम, अनिद्रा, ग्लानि आदि को मिटाता है।



फालसा का शर्बत

फालसा का रस 30 तोला, चीनी 1 सेर मिला कर यथाविधि शर्बत बना लें। ठंडा होने पर छान कर बोतलों में भर लें।


अनुपान

2 से 4 तोला तक शर्बत शीतल जल मिला कर आवश्यकतानुसार सेवन करें।


गुण और उपयोग

आमाशय और हृदय को बलप्रद और यकृत की ऊष्मा का शामक है। तृष्णा को शमन करता तथा वमन और अतिसारनाशक है। यह अत्यन्त स्वादिष्ट एवं रोचक तथा शीतवीर्य है। मन को प्रसन्न करने वाला, चित्त भ्रम, मानसिक अशान्ति और बेचैनी मिटाता है। मल और मूत्र का शोधन करता है ।



रक्तशोधक शर्बत

उशबा 8 तोला, मजीठ, 4 तोला, सौंफ 2 तोला, उन्नाव 25 नग, सपिस्तान 25 नग, हंसराज 1 तोला, गाजवान 1 तोला लेकर जौकुट कर रात्रि को 8 गुने जल में भिंगो दें, और सुबह क्वाथ करें। अष्टमांश जल शेष रहने पर उतार कर छान लें फिर 2 सेर चीनी मिलाकर यथाविधि शर्बत तैयार कर लें, ठंडा होने पर छान कर बोतलों में भर लें। - र.त.सा. से किंचित् परिवर्तित


मात्रा और अनुपान

1 तोला से  2 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिला कर दिन में दो बार दें।


गुण और उपयोग

यह शर्बत रक्तदोष, उपदंश विकार, पूयमेह (सूजाक), कुष्ठ, वातरक्त, फोड़ा - फुन्सी, दाद, विसर्प, विस्फोटक, खाज-खुजली, बिच्छी (एक्जिमा) आदि रोगों में उत्तम गुणकारी है। यह रक्त को शुद्ध करता, बढ़ाता और त्वचा के वर्ण को निखारता है।



सेव का शर्बत

सेव का रस एक पाव, मिश्री या चीनी आधा सेर इनका यथाविधि शर्बत बना कर ठंडा होने पर छान कर बोतल में भर कर रख लें। - यू. सि. यो. सं.


मात्रा और अनुपान

1 तोला इस शर्बत को अर्क गावजवान 5 तोला में मिला कर सेवन करें।


गुण और उपयोग

यह हृदय को पुष्ट और उल्लसित करता है, दिल की धड़कन, अतिसार और वमन में अतीव गणकारी है। मानसिक अशान्ति, भ्रम, दिमागी कमजोरी, अवसाद, थकावट आदि को दूर करता है। उत्तम बलवर्द्धक एवं रस- रक्तादि धातुओं को बढ़ाने वाला है।



शंखपुष्पी का शर्बत

शंखपुष्पी आधा पाव, ब्राह्मी (हरद्वारी) आधी छटाँक, शाम को 3 सेर आधा पाव जल भिंगो दें। प्रातः काल अग्नि पर पकावें, 2 सेर जल शेष रहने पर कपड़े से छान कर 5 सेर चीनी और साइट्रिक एसिड ( निम्बू सत्व) 30 रत्ती ( एक ड्राम), मिला कर यथाविधि शर्बत बना लें। ठण्डा होने पर छान कर बोतलों में भर कर रख लें। इसमें खाने का हरा तरल रंग 1 ड्राम या आधा ड्राम आवश्यकतानुसार मिला सकते हैं। इससे रंग अच्छा होता है। - प्रचलित शर्बत विधि से


मात्रा और अनुपान

1 से 2 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिला कर सुबह-शाम दें ।


गुण और उपयोग

इसके सेवन से बुद्धि तथा स्मरण शक्ति बहुत अच्छी बढ़ जाती है। दिमागी कमजोरी के कारण जरा-सी भी दिमागी मेहनत का काम करने से होने वाली दिमागी थकावट और सिर दर्द नष्ट होता है। उन्माद, अपस्मार, मूर्च्छा, हिस्टीरिया आदि विकारों को नष्ट करता है। मानसिक अशान्ति और चित्त विभ्रम को मिटाता है। स्नायु - दौर्बल्य को मिटाता एवं दिमाग को पुष्ट करता है।

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