Inside this Article:
- Amritvati | अमृतवटी - (बृ. वै.)
- Abhyadimodak | अभयादिमोदक - ( शा. उ. अ. ४ )
- Amalpittharigutika | अम्लपित्तहारीगुटी - (प्र. र. )
- Aliyakadiguti | एलियकादिगुटी - ( वृ. वै.)
- brihat suranvatak | बृहत् सूरणवटक- ( शाडगंधर)
- Chandarparbhaguti/Vati | चंद्रप्रभागुटी - ( शाडगंधर)
- Kaphakuthar | कफकुठार - (र. यो. सा.)
- Kankyanguti | कांकायनगुटी - ( शार्ङ्गधर)
- Khadiradiguti | खदिरादिगुटी - ( यो. र. )
- Lavangadivati | लवंगादिवटी - ( यो. र. )
- Lasunvati | लसूणवटी - (बृ. वै.)
- Makardhawajguti | मकरध्वजगुटी - (भै. र. )
- Mandoorvatak | मंडूरवटक - (वृ. वै.)
- Naag guti | नागगुटी - (बृ. वै.)
- Punarnava Mandoor | पुनर्नवा मंडूर - (च. सं चि. २६)
- Rasonvati | रसोनवटी- (बृ. वै.)
- Shkravati | शक्रवटी (यू. वै.)
- shirah shoolhaarivati | शिरःशूलहारीवटी - (र. चं. ४५७ पा.)
- Sanjeevani vati | संजीवनी गुटी - ( शाडर्गधर )
आयुर्वेदिक गुटिका और वटिका के लाभ
"भारत की ऋषि परंपरा ने हमें ऐसा ज्ञान दिया है जो न केवल रोगों का इलाज करता है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है। आयुर्वेद मात्र चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवनशैली है। इस लेख में आप जानेंगे उन प्राचीन आयुर्वेदिक दवाओं के बारे में उन्हें कैसे ले सकते हैं और किन किन दवाइयों से क्या क्या फायदा हो सकता है और उनके अंदर कौनसी कौनसी औषधियां होती हैं।
नोट- किसी भी दवा का सेवन करने से पहले किसी वैद्य से जरूर परामर्श लें।
Amritvati | अमृतवटी - (बृ. वै.)
मुख्य द्रव्य- काली मिर्च, अहिफेन, कपर्दक भस्म, निम्बू रस आदि।
मात्रा- आधी से १ रती।
गुणधर्म- किसी भी प्रकार के अतिसार में लाभदायक यह गुटी अधिक प्रमाण मे स्तभक और अल्प प्रमाण मे पाचक है। आमातिसार में इसका उपयोग न करे।
विशेष अवस्था पक्वातिसार मे अतिसरण शौच होना) शूल मे स्तभक और शूलघ्न कार्य करती है। मलावरोध(कब्ज) मे भी इसका उपयोग न करें।
अनुपान-अदरक रस, निम्बू रस, तक्र, गरम जल।
Abhyadimodak | अभयादिमोदक - ( शा. उ. अ. ४ )
मुख्य द्रव्य- हरडा, त्रिकटु, विडंग, आमलकी, पिप्पलमूल, दालचीनी, तमालपत्र, मुस्ता, दतीमूल, निशोत्तर, मिश्री आदि।
गुणधर्म - यह मोदक पाचक, दीपक और रेचक है। विषमज्वर, मदाग्नि, पाण्डु, खाँसी, भगन्दर, अर्श, कुष्ठ, गुल्म, गलगण्ड, भ्रम, उदर, पीठ मे पीडा, जंघा और उदर मे शूल, पार्श्वशूल, कमर की पीडा में लाभप्रद हे। मलवृद्धि या सतर्पणोत्य दोषवृद्धि के कारण उपरोक्त विकार होने पर इसका उपयोग अवश्य करना चाहिये ।
इसके सेवन से शारीरिक मल और दोष नष्ट होकर पाचन क्रिया व्यवस्थित होकर रसोत्पत्ति और रस निर्मिति भलीभांति होने लगती है। गोधनीय रसायनो मे यह श्रेष्ठ है।
अनुपान - उष्ण जल
Amalpittharigutika | अम्लपित्तहारीगुटी - (प्र. र. )
मुख्य द्रव्य- त्रिकटु, त्रिफला, मुस्ता, बीडलवण, इलायची, विडंग, तमाल पत्र, लोंग, निशोत्तर, मिश्री आदि।
मात्रा -४ से ८ गोलियाँ।
गुणधर्म- वमन, अम्लपित्त, खट्टी डकारे आना, छाती मे जलन, उदरस्थ वायु, अन्न का शीघ्र पाचन न होना आदि विकारो मे शीघ्र कार्य करता है।
अनुपान- उष्ण जल।
Aliyakadiguti | एलियकादिगुटी - ( वृ. वै.)
मुख्य द्रव्य – कृष्णवोल, देवदार, गुडूची सत्व, अगोकछाल, पुनर्नवा, दारु- हरिद्रा आदि।
मात्रा- २ से ४ रत्ती।
गुणधर्म- गर्भाशय, शूल, अनियमित, 'ऋतुस्राव, मासिक धर्म के समय शूल, स्राव अल्प होना आदि मे यह उत्तम कार्य करती है।
अनुपान- उष्णजल, अशोक कल्प ।
brihat suranvatak | बृहत् सूरणवटक- ( शाडगंधर)
मुख्य द्रव्य- जमीकंद, वरधारा, गूसली, चित्रक, त्रिफला, त्रिकटु, लोंग, सोंठ भल्लातक, पिप्पलीमूल, तालीसपत्र, दालचीनी, एला, गूड आदि।
मात्रा- वैध के अनुसार।
गुणधर्म- श्लीपद, शोथ, भगन्दर, अर्श, रक्तज अर्श, अग्निमाद्य, मलावरोध में लाभप्रद है। यह वटक स्मृति बुद्धिदायक, दीपक और पाचक है।
अनुपान- जल और तक्र।
Chandarparbhaguti/Vati | चंद्रप्रभागुटी - ( शाडगंधर)
मुख्य द्रव्य- कचोरा, वचा, मुक्ता, धनियाँ, तमालपत्र, इलायची, दालचीनी किराततिक्त गुडूची, दारुहरिद्रा, देवदार, हरिद्रा, अतीस, पिप्पलीमूल, चित्रक, चवक, विडग गजपिप्पली, सोठ, शर्करा, यशलोचन, गुग्गुल, शिलाजतु लोहभस्म, त्रिफला, निगोत्तर, दतीमूल, काली मिर्च, पिप्पली, यवक्षार, सज्जी, संधानमक, सौवर्चल, कर्पूर आदि।
मात्रा- १ से २ रती।
गुणधर्म- जागरण, मानसिक कष्ट, उष्णता, स्वप्नावस्था, धातुक्षीणता, प्रदर, रक्तप्रदर, गर्भाशय के विकार, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात, प्रमेह, मूत्र से धातुस्राव, अपस्मार, अर्थ, रक्तपात वृद्धि से चक्कर आना इन विकारो मे लाभदायक है।
अनुपान- दूध मिश्री।
Kaphakuthar | कफकुठार - (र. यो. सा.)
मुख्य द्रव्य - पारा, गंधक, त्रिकटु, लोहभस्म, ताम्र भस्म, रिंगणी, फलरस, हरडा, धत्तूरपत्र रस आदि।
मात्रा- १ से २ रत्ती।
गुणधर्म- इसका उपयोग उर स्थान में कफ होने पर अच्छा होता है। त्रस्त कास हो तो शाम के समय पर इसका उपयोग करे।
अनुपान - नागवेलपत्र रस।
Kankyanguti | कांकायनगुटी - ( शार्ङ्गधर)
मुख्य द्रव्य - अजवायन, जीरा, धनियाँ, गोकर्ण, विडंग, अजमोद, कन्नोजी जीरा, काली मिर्च, सोठ, हिंग, हरड, दतीमूल, निशोत्तर, सज्जी, यवक्षार, संधानमक, सौवर्चल, वीडलवण, समुद्रनमक, कचोरा, चित्रक, पुष्करमूल, आम्लबेतस, दाडिमछाल, महालुग, आदि।
मात्रा- १ से २ रती।
गुणधर्म- बवासीर, हृद्रोग, कृमि, गुल्म, ग्रहणी, शूलनाशक, कफजगुल्म मे गोमूत्र मे पित्तगुल्म मे दूध में, वातजगुल्म में कुमारीआसव के साथ, सन्निपातज गुल्म में दशमूलारिष्ट के साथ और रक्तगुल्म में ऊटनी के दूध के साथ देना चाहिए।
अनुपान- शहद।
Khadiradiguti | खदिरादिगुटी - ( यो. र. )
मुख्य द्रव्य - खदिर छाल, हरडा, बहेडा, कायफल, करवा, पुष्करमूल, कर्कटरागी, अतिस, गुडूची, रिगणी, डोरली, घमासा, लोग, सोठ, काली मिर्च, पिप्पली, भारगमूल, आदि।
मात्रा - १ से ४ रत्ती।
गुणधर्म - जीर्णश्वास खास के विकार, मुखदुर्गंधि, मुँह में छाले, मुखप्रसेक, मसूडो मे शौच, दांतो में कीड़ा लगना, दाँतो से रक्तस्राव, जीभ का भारीपन, आवाज बैठना आदि में लाभदायक है।
अनुपान - मिश्री के साथ गोली मुँह मे रखकर चूसना चाहिये।
Lavangadivati | लवंगादिवटी - ( यो. र. )
मुख्य द्रव्य- लोंग, काली मिर्च, बहेडा, कत्था, बबूल की छाल आदि।
मात्रा- १ मे ३ रत्ती।
गुणधर्म- खांसी, सूखी खांसी में लाभदायक है। शेष गुण खदिरादिगुटी के समान है।
अनुपान - मिश्री के साथ १ गोली मुह मे रखकर चूसना चाहिये।
Lasunvati | लसूणवटी - (बृ. वै.)
मुख्य द्रव्य - इसमे सब औषधियाँ रसोनवटी अनुसार है।
गुणधर्म- रसोन वटी के अनुमार।
मात्रा- १ से २ गोलियाँ।
Makardhawajguti | मकरध्वजगुटी - (भै. र. )
मुख्य द्रव्य- मकरध्वज, कर्पूर, जायफल, काली मिर्च, कस्तूरी, आदि।
मात्रा- १ गोली।
गुणधर्म - यह वृष्य है। इसे सेवन करने से कामेच्छा खूब होती है । हतबल या निराश हुये रोगी फिर से आनंद पाते है। यह गुटी पांडुरोग, जीर्ण वात रोग, छर्दि, उन्माद, मतिभ्रम्श (पागल), उदर, मेह, नपुंसकता, अरुचि, अग्निमाद्य, ग्रहणी, शरीर पर अकाली झुर्रियां पडना, बाल सफेद होना, कुम्भ कामला, कफ, वात आदि विकारो पर उपयुक्त है। यह उसका नाश करती है । बल बढाती है, तन्दुरुस्ती बढती हूं और असाध्य रोगो को भी नष्ट करती है। तन्दुरुस्ती के लिये और तृप्तिपर यह एक ही अच्छी दवा है । उचित अनुपान के साथ इसका उपयोग करे।
अनुपान- मक्खन, खांड शक्कर, घी और शहद।
Mandoorvatak | मंडूरवटक - (वृ. वै.)
मुख्य द्रव्य - माक्षिक भस्म, दारुहरिद्रा, चवक, पिप्पलमूल, देवदार, सौठ, काली मिर्च, पिप्पली, चित्रक, विडग त्रिफला, मुस्ता, महूरभस्म आदि।
मात्रा- ४ से ८ रती गुणधर्म इसका उपयोग पाण्डुरोग, कुष्ठ, अजीर्ण, शोष, उरस्तम, अरुचि, अर्थ, कामला, प्रमेह, प्लीहावृद्धि इन पर अच्छा होता है।
अनुपान- तक्र।
Naag guti | नागगुटी - (बृ. वै.)
मुख्य द्रव्य- अक्कलकारा, पिप्पलमूल, बछनाग, हिंगुल, केशर, जायफल, जायपत्री, टकण, लोंग, दालचीनी आदि।
मात्रा- आधी रत्ती
गुणधर्म- जुखाम, खासी, ज्वर, कास, श्वास, अगपीडा, बालको को विशेष लाभप्रद है, किन्तु मात्रा सूक्ष्म देना चाहिये नही तो पेशाब पीली होने लगती है।
अनुपान- पान, शहद, कफाधिक्य मे ही इसका उपयोग करे।
Punarnava Mandoor | पुनर्नवा मंडूर - (च. सं चि. २६)
मुख्य द्रव्य- पुनर्नवा, त्रिवृत्त, त्रिकटु, विडंग, दारुहरिद्रा, चित्रक, कोष्ठ, त्रिफला, हरिद्रा, इन्द्रजौ, दंतिमूल, चवक, कुटकी, पिप्पलीमूल, मुस्ता, गौमूत्र आदि।
मात्रा- २ से ६ रती।
गुणधर्म- पाण्डुरोग और उससे प्लीहावृद्धि शोथ, ग्रहणी, सग्रहणी, अर्श, ज्वरयुक्त हो तो उपयोग करे। उसी तरह कृमि और त्वगविकार पर करे।
अनुपान- तक्र।
Rasonvati | रसोनवटी- (बृ. वै.)
मुख्य द्रव्य- लहसुन, गंधक, जीरा, सेधानमक, हिंग, सोठ, काली मिर्च, पिप्पली, निंबूरस आदि।
मात्रा- १ से २ गोलियाँ।
गुणधर्म - विष्ठव्धाजीर्ण, अजीर्ण में दस्त होना, पेट का फूलना, खट्टी डकारे आना, कॉलरा मे मूत्रावरोध आदि में लाभप्रद।
अनुपान - उष्ण जल, निम्बू का रस।
Shkravati | शक्रवटी (यू. वै.)
मुख्य द्रव्य - सागरगोटा, काली मिर्च, सेंधा नमक, हिंग, निर्गुंडी आदि।
मात्रा- ३ से ६ रत्ती।
गुणधर्म- विषमज्वर, मलेरिया, शूल, मस्तकशूल, प्लीहा- वृद्धि, नष्टार्तव शैत्य मे उपयोगी है। इसमे काली मिर्च अधिक मात्रा मे होने से अधिक सेवन से पित्तवृद्धि होती है। मलेरिया मे जब जाडा लग रहा हो उस समय उष्ण जल के साथ इसका उपयोग करने से जाडा कम हो जाता है । यह करज का कल्प है।
अनुपान- उष्णजल, तक्र, गोमूत्र।
shirah shoolhaarivati | शिरःशूलहारीवटी - (र. चं. ४५७ पा.)
मुख्य द्रव्य- भांगबीज, धत्तूरबीज, रिंगणी, वरधारा, समुद्रशोफ, पारा गंधक आदि।
मात्रा- १ से २ रत्ती।
गुणधर्म- पुराने शूल विकार, सन्निपातज्वर, आमवात, पाण्डुरोग, संग्रहणी, कामला, शूल, अर्श, अपच, आत्रवृद्धि इनपर उपयुक्त है।
अनुपान- जल।
Sanjeevani vati | संजीवनी गुटी - ( शाडर्गधर )
मुख्य द्रव्य - विडंग, भल्लातक, सोठ, पिप्पली, बालहरीतकी, बहेडा आमलकी, गुडूचि, वचा, वछनाग, आदि।
मात्रा- १ से २ रत्ती।
गुणधर्म- यह भिलावे का कल्प है। कृमि विषूचिका, वमन, संग्रहणी, अतिसार, पेट का फूलना, अपचन, ज्वर, कास, श्वास में लाभदायक है।
अनुपान- निम्बू का रस, शर्करा, तक्र में सेंधा नमक मिलाकर, अदरक रस शहद।