मिर्गी | अपस्मार | Epilepsy
अपस्मार = अप + स्मार । अपस्मार शब्द 'अप' और 'स्मार' से बना है। अप का अर्थ नाश करने वाला है और स्मार का अर्थ स्मृति या याद्दाश्त है। जो स्मृति या याद्दाश्तको नाश करता है, उसे "अपस्मार" कहते हैं। इसे ही आधुनिक भाषा में मिर्गी कहते हैं।
मिर्गी के सामान्य लक्षण
👉अपस्मार या सृगी रोगी अपने तई' अंधेरेमे घुसता हुआ देखता है, उसकी स्मृति या याढ नाश हो जाती है, आँखों में विकार हो जाते. हैं और वह हाथ पैरों को इधर-उधर फेंकता है ।
👉"चरक" में लिखा है, जब अपस्मार या मृगीका दौरा होता है, तब रोगी मिथ्या रूप देखता है, जमीन पर गिर पडता है और फड़कने की सी चेष्टा करता है। उसकी आँखें और भौंहें टेढ़ी हो जाती हैं, मुंह से लार बहती है और वह हाथ-पाँवोंको इधर-उधर पटकता है। इसके बाद जब वातादिक दोषों का वेग या जोर घट जाता या नष्ट हो जाता है, तब वह स्वस्थ और तन्दुरुस्त आदमीकी तरह होश में आकर उठ बैठता है। ये अपस्मार या मृगीके साधारण लक्षण हैं।
👉मृगी रोग में स्पर्श शक्ति या छूने की ताक़त नहीं रहती, आत्मज्ञान शून्यता हो जाती है शरीर ऐंठता है, नेत्र, मस्तक, हाथ और शरीर को कोई मरोड़े डालता हो ऐसा मालूम होता है, भीतर से रोने की सी आवाज़ आती है, साँस लेने में तकलीफ होती है, साँस रुकने लगता है और कभी-कभी तो बन्द ही हो जाता है।
👉रोगी दाँतों को घिसता या दबाता है, अपनी जीभ को काटता है, बिना इच्छाके पाखाना-पेशाब कर देता और वीर्य भी निकल जाता है। आंखें घूमने लगती हैं, सांस जल्दी-जल्दी लेता है, मुंह से झाग निकलते हैं, चेहरे और शरीर का रंग मैला हो जाता है, नाड़ी की चाल स्वाभाविक रहती है और पसीने आते हैं। ऐसे लक्षण कुछ सेकन्डों से लगाकर १० मिनट तक रहते हैं।
जब मृगी दूर हो जाती है, रोगी कमजोर होकर उठता और सोना चाहता है। इस नींदसे रोगी जल्दी नहीं उठता।
साधारण बेहोशी और मिर्गी की बेहोशी में अंतर
डाक्टर लोग मृगीको “एपिलेप्सी” कहते हैं। उनका कहना है कि मृगी वाला एक साथ चीख मार कर गिर पड़ता है और उसके मुंह से झाग आने लगते हैं। और किसी भी मूर्च्छा में रोगी चीख़ मार कर नहीं गिरता और मुंह मे भाग भी नहीं आते। मृगी की मूर्च्छा और अन्य प्रकार की मूर्च्छाओं में यही बड़ा भेद है।
मिर्गी के कारण | मिर्गी किन कारणों से होती है? | Causes of Epilepsy Attack Disease
👉चिन्ता, शोक, क्रोध, मोह, लोभ आदिसे वात, पित्त और कफ कुपित हो जाते हैं। फिर वे हृदय में रहनेवाली और मन को बहाने वाली नाड़ी में जाकर स्मृति का नाश करके, अपस्मार या मृगी रोग पैदा कर देते हैं।
👉"चरक" में लिखा है, जिसका चित्त रजो गुण और तमो गुणसे घिरा रहता है; जिसके दोष उद्भ्रान्त, विषम और अधिक होते हैं; जो भोजन के नियमों के विपरीत मैला, ख़राब और अपवित्र खाना खाता है, जो शास्त्रमें लिखे हुए नियमोंके विरूद्ध काम करता है और जिसका शरीर अत्यन्त क्षोण हो जाता है, उसके वातादि दोष कुपित होकर और रजो गुण तमो गुण के अत्यन्त वशीभूत होकर, अन्तरात्माओ निवास स्थान- हृदयमें डेरा डाल देते हैं।
👉वही आदमी जब काम, क्रोध, मोह, लोभ आदिके वशीभूत होता यानी चिन्ता, शोक या क्रोध आदि करता है, तब हृदयमे ठहरे हुए वे ही दोष उत्तेजित होकर स्मरण शक्ति को नाश कर देते हैं। इस अवस्थाका नाम ही "अपस्मार" या "मृगी" है।
👉यह रोग माँ बापके किसी रोग में ग्रस्त रहने से बहुत ज़ियादा शराब पीने से, अत्यन्त स्त्री-प्रसङ्ग करने से, हस्तमैथुन करने से और किसी तरह का विष या ज़हर खाने से दिमाग में खून जमा होकर-होता है। फिर इस रोगके दौरे होने लगते हैं।
मिर्गी (अपस्मार) रोग होने से पहले नीचे लिखे हुए लक्षण नज़र आते हैं :-
👉हृदय काँपना, सूनापन, पसीने आना, विस्मय या अति चिन्ता, बेहोशी, बुद्धि बिगडना, नीद न आना।
👉चरक ने अपस्मार के पूर्वरूपों में बिना आवाज़ के आवाज़ सुनाई देना, अथवा सुनने की शक्ति का नष्ट हो जाना, मुँह से लार गिरना, नाक से मवाद आना,
👉अन्न का न पचना, हृदय में पीडा होना, कोख में गुड-गुढाहट होना, आंखों के सामने अँधेरी आना तथा मोह, मूच्छा और भ्रम आदिका होना लिखा है।
मिर्गी के प्रकार | Types of Epilepsy
(१) कफज
(२) पित्तज
(३) वातज
(४) सन्निपातज
इसके अलावा किन्ही किन्ही आयुर्वेद में दिमागी, कंठ, अमाशय, लिवर, स्प्लीन(तिल्ली), गर्भाशय या वीर्याशय से पैदा होने वाली, आंतो की मिर्गी, हाथ पावों होने वाली, जहर खाने से या कोई जहरीले जानवर द्वारा काटने से होने वाली मिर्गी होती हैं जिनके बारे में आगे बताया जायेगा।
अलग अलग दोषों के मिर्गी के लक्षण
कफज मिर्गी के लक्षण
👉जिस मनुष्य के शरीर का, मुह के भागों का और नेत्रों का रंग सफेद हो, अंगों में भारेपन हो, सर्दी लगे, रोए खड़े हों, संसार के सभी पदार्थ सफेद-ही-सफेद दीखे और बहुत देर के बाद चित्त शान्त हो या होश हो, उसे "कफज मृगी" रोग है।
👉"सुश्रुत में" लिखा है, जो सदा मुँह में पानी भर-भर आने और नींद से पीड़ित हो, जमीन पर गिरता हुआ मुँह से झाग डाले और कहे कि सफेद रंग का भयंकर रूप मेरे आगे या पीछेसे दोड़ता आता है, उसके बाद में बेहोश होता है, उसे " कफज मृगी" है।
👉"चरक" में लिखा है, जो देर में स्मृति नष्ट हो और देर में ही होशमें आवे, जो जमीन पर गिर कर हाथ-पाँव आदि को इधर-उधर न पटके, मुँह से लार गिरावे, जिस के नाखून, नेत्र चमड़ा और मुँह सफेद रंगके हों, जो सफेद और भारी रूपों को देखे तथा कफ कारी चीज़ों से जिसका रोग बढ़े और कफनाशक पदार्थों से नाश हो, उसे " कफज मृगी” है।
👉कफज मृगी में मुह से सफेद झाग निकलते हैं और शरीर शीतल हो जाता है । वातज और पित्तज मृगी की अपेक्षा इस मृगी वाले को देर में होश होता है।
नोट - हिकमत में लिखा है, कफ की मृगी होने से बुद्धि बिगड जाती है, इन्द्रियां हस्त हो जाती हैं, सिर में बोझ सा मालूम होता है, मृगी आने के समय मुॅह में भाग बहुत आते है, मुँह से थूक और नाक से मवाद बहुत निकलता है, शरीर ढीला रहता है और हिलने चलनेमें कठिनाई होती है।
पित्तज मृगीके लक्षण
👉जिसके शरीर और नेत्रों में पीलापन हो, प्यास लगे, जिसे संसार के सभी पदार्थ आग से घिरे हुए दीखें, उसे "पित्तज मृगी” समझो।
👉“सुश्रुत" में लिखा है, जो ताप गरम शरीर, प्यास, पसीने और मूर्च्छा से दुखी हो, जो अंगों को धुनता हुआ बेहोश हो जाय और कहे कि कोई पीला भयंकर रूप मेरे आगे या पीछे से दौड़ा आता है, उसके बाद मैं बेहोश हो जाता हूँ, उसे “पित्तकी मृगी” समझो ।
👉"चरक" में लिखा है, जो प्राणी भ्रष्टस्मृति हो, क्षण-क्षण में होश में आवे, कंठ से न समझ में आनेवाली आवाज़ निकाले, ज़मीन पर हाथ- पैर पटके, जिसके नाखून, नेत्र, मुंह और चमड़ा हल्दी के रंगके से, हरे या लाल हों और जो खूनसे तर, उग्र, भयानक, प्रकाशित और क्रोधित रूप देखे तथा पित्तकारक पदार्थों के सेवन करने से जिसका रोग बढ़े और पित्त नाशक चीज़ों से शान्त हो, उसे “पित्तज मृगी" समझो।
👉पित्त की मृगो में पीले भाग निकलते हैं तथा मुँह, आंख और शरीरका रंग पीला हो जाता है।
नोट - हिकमत में लिखा है, पित्तज मृगी होने से रोगी बहकता है, बेचैनी रहती है, घबराहट होती है, मृगी आने के समय मुँह और नेत्र पीले हो जाते है। गरमी बहुत लगती है, कय(उल्टी) होती हैं, मृगी जल्दी चली जाती है। पित्त की वजह से मृगी बहुत कम होती है, क्योंकि पित्त का मल बहुत हल्का और पतला होता है।
वातज मृगी के लक्षण
👉"भावप्रकाश" में लिखा है, अगर रोगी का शरीर काँपे, रोगी दाँत चबावे, मुँह से झाग निकाले, ऊंचे साँस ले और उसे आग के समान लाल-लाल रूप अपने चारों तरफ दोखें तो "वातज मृगी" समझो।
👉"सुश्रुत" में लिखा है, अगर रोगी काँपता हुआ दांतों को भींचे, जल्दी-जल्दी सांस ले, मुह से झाग गेरे और कहे कि कोई काला- काला रूप मेरे पीछे दौड़ता है या सामने दीखता है, तब मुझे बेहोशी होती है - तो "वातज मृगी” समझो।
👉"चरक" में लिखा है, जिस प्राणी की स्मरण शक्ति का सदैव नाश हो और क्षण-क्षण में संज्ञा लाभ हो, जिसके दोनों नेत्रों की पुतलियाँ सिकुड़ जाये, जो सदैव बकवाद करे, मुह से झाग डाले, जिसकी गर्दन फूलो सी हो, जिसके सिरमें दर्द रहा करे जिसके हाथ-पैर स्थिर न रहें; जिसके नेत्र, मुख, चमड़ा और नाखून लाल रंग के हों; जिसका चित्त स्थिर न हो; जो चपल, कठोर और रूखे पदार्थ देखे तथा बादी करने वाले पदार्थ सेवन करने से जिसका रोग बढ़े और वात नाशक पदार्था से रोग शान्त हो, उसे "वातज मृगी" समझो।
👉वातज मिर्गी वाला काँपता और मुँह से आग(गर्म झाग) गिराता है तथा उसे काली या लाल नाना प्रकार की मिथ्या मूर्त्तियाँ दीखती हैं।
नोट - हिकमत में लिखा है, अगर बादी से मृगी रोग होता है तो है, दिल फड़कता है और मुँह के भागों का जायका खट्टा होता है। अगर झाग ज़मीन पर गिर पड़ते हैं, तो उनकी तेजी या खटाई से जमीन सिरके को तरह उबलने लगती है। इन झागों को साफ़ करने के बाद भी निचे की जमीन गर्म ही महसूस होती है। वातज मृगी कफज से बुरी है। क्योंकि कफ दिमाग को प्रकृति के अनुकूल होता है और अनुकूल चीज कम हानि करती है ।
सन्निपातज मृगीके लक्षण।
👉अगर तीनों दोषों के अपस्मार के लक्षण हों, सन्निपातज मृगी समझो। सन्निपातज मृगी असाध्य होती है। क्षीण प्राणी की एक-दोषज मृगी भी असाध्य होती है। बहुत पुरानी मृगी भी असाध्य होती है।
👉"सुश्रुत" में लिखा है, सन्निपात की मृगी में हृदय में वेदना, प्यास और उत्क्लेश-ये तीनों दोषोंके लक्षण होते हैं तथा बकवाद, फूजन और क्लेश, ये भी होते हैं। सब दोषों के मिले हुए काले, लाल, पीले और सफेद भयंकर रूप दीखते हैं अथवा कभी कैसे और कभी कैसे रूप रोगी को बेहोश होने से दीखते हैं।
अपस्मार (मिर्गी) के प्रकोप का समय
👉वातज मृगी का दौरा 12 दिन में होता है और इस बीच में भी ज़रा ज़ोर दिखाता है।
👉पित्तज मृगी का दौरा 15दिनोंमें होता है और पखवारे के बीच में भी ज़रा ज़ोर करता है।
👉कफज मृगी का दौरा 1 महीने में होता है और महीने के बीचमें भो ज़रा ज़ोर होता है।
मृगी का दौरा कभी-कभी महीने भर से ज़ियादा दिनों में भी होता है । इस रोग का दौरा नित्य नहीं होता ।
नोट- किसी तरह की मृगी का बारह दिनों में, किसी का पन्द्रह दिनों में और किसी का ३० दिनों में दौरा होता है—ऐसा क्यों होता है ? अपस्मार के कारण रूप दोष सदा मौजूद रहते हैं, फिर अपस्मार सदा क्यों नहीं होता ?
जिस तरह उत्पत्ति के कारणरूप वर्षा के पूरी तरह से होने पर भी, बथुए आदि के बीज, स्वभाव के कारण, शरद ऋतु में ही पैदा होते हैं, उसी तरह कारणरूप दोषों के होने पर भी, अपस्मार स्वभावसे ही १२, १५ और ३० दिनों में कोप करता है।
मिर्गी होने के मूल ३ कारण
1. दिमागी मिर्गी
2. कंठ से निचे के अंगो से होने वाली मिर्गी
3. जहर से होने वाली मिर्गी
दिमागी मिर्गी
दिमागी मिर्गी के प्रकार
(1)वातज (2)पित्तज (3)कफज (4)खून की मिर्गी
वात, पित्त और कफ के लक्षण ऊपर बताये गए हैं वही होते हैं।
खून की मिर्गी के लक्षण
👉अकेले खून से मृगी रोग बहुत कम होता है, परन्तु वातरक्त ( बादी और खून) और कफरक्त ( कफ और खून ) से -बादी और कफ की मृगीके समान मृगी रोग अक्सर होता है।
👉अगर दिमाग़ मे खून जियादा होता है, तो वहाँ की नसें भरी रहती हैं, चेहग लाल सुर्ख़ हो जाता है, मृगी के समय चेहरा भरभरा उठता है और कभी-कभी मृगी आने के समय नाक से खून भी गिरने लगता है।
👉इस प्रकार का मृगी रोग होने से पहले, रोगी तरह-तरह के मस्तक- शूल या सिर-दर्द में फॅसा रहता है। सदा सिर घूमा करता है। चक्कर आया करते हैं। नेत्रोंके सामने अंधेरी सी आती रहती है।
👉अगर खून की मृगी जाती भी रहती है, तो भी सिरमें दर्द हमेशा हुआ करता है और बुद्धि बिगड जाती है।
कंठ से निचे के अंगो से होने वाली मिर्गी
कंठ से निचे के अंगो से होने वाली मिर्गी के प्रकार
कंठ से नीचे के अंग-आमाशय, तिल्ली, जिगर, गर्भाशय और आंतों वग़ैरः से पैदा होने वाली मृगीके लक्षण लिखते हैं। यह मृगी सात तरहकी होती है :-
(१) आमाशय से होने वाली ।
(२) तिल्लीसे होने वाली ।
(३) पेटके ऊपर की झिल्ली की जलन से होने वाली।
(४) जिगर, यकृत या लिवर के संयोग से होने वाली।
(५) वीर्याशय या गर्भाशयके दोषों से होनेवाली।
(६) आंतों में कीड़े वग़ैरः पड़ने से होने वाली।
(७) हाथ पैरोंमें दोष जमा होने से होनेवाली।
आमाशय की मिर्गी के लक्षण
👉जब आमाशय दूषित कफ, वात या पित्त से भर जाता है, तब भाफ के परमाणु वहाँ से उठ उठकर दिमाग़ की तरफ जाते हैं। उनसे दिमाग़ को तकलीफ़ होती है और वह उनसे बचने के लिए सुकड़ जाता है, तब वायु के रास्ते बन्द हो जाते हैं और दोषों की गाँठ पड़ने से मृगी पैदा हो जाती है।
👉उन्मत्त की तरह आमाशय हिलता है।
👉आमाशय में, विशेष कर भूख के समय, जलन चुभन और कॅप-कॅपी होती है।
👉मिर्गी के दौरे के समय रगं खिंचती है, नाक के नयने फूल जाते हैं, गला घुटासा हो जाता है, कभी-कभी रोगी चिल्ला उठता है और कभी-कभी दस्त, पेशाब या वीर्य निकल जाते है।
👉वमन या कय होने के बाद मृगी का ज़ोर घट जाता है।
👉अजीर्ण होने से या मल के भरे रहने से मृगी अधिक ज़ोर दिखाती है या अपने समय से पहले ही आ जाती है और देर तक ठहरती है।
👉ये लक्षण आमाशय के दोषों की दुष्टता से होते हैं; किन्तु दोषों के चढ़ने से प्रकट होते हैं। यह रोग जब दोषों की खराबी से होता है, तब प्राय सोते समय होता है।
👉आमाशय वाली मृगी खाली पेट होने या भूख के समय ज़ियादा होती है, क्योंकि जब आमाशय खाली रहता है, दोष आमाशय से उठ कर दिमाग़ में आसानी से चले जाते है। उनको बीच में रोकने वाला कोई नहीं होता।
👉इसी से आमाशय के भरे होने पर भी, बारम्वार खाने से बहुत कम हानि होती है : क्योंकि आमाशय के भरे रहने से बुरा माहा दिमाग़ तक मुश्किल से पहुचता है।
👉आमाशय की मृगी बहुधा उचित भोजन से जाती रहती है, दवा खाने की दरकार नहीं होती।
तिल्ली की मिर्गी के लक्षण
जिस तरह आमाशय के कारण से मृगी रोग होता है उसी तरह “तिल्ली से भी होता है। ऐसी मृगी में तिल्ली का फूलना, उसका पत्थर की तरह कड़ा होना और दर्द होना ये लक्षण होते हैं।
पेट के ऊपर को झिल्ली से होने वाली मृगी के लक्षण
पेट के ऊपर को झिल्ली में जलन होने से भी मृगी रोग होता है। ऐसी मृगी होने से खट्टी खट्टी डकारे आती हैं, पेट फूलता है, पेट के ऊपर की झिल्ली में जलन होती है, बेचैनी रहती है, कय होती हैं और उनमें कच्चा अन्न निकलता है।
जिगर से होने वाली मृगी के लक्षण
यह मृगी जिगर से होती है। इसके लक्षण वही हैं, जो जिगर के रोगों के हैं।
गर्भाशय या वीर्याशय की मृगी के लक्षण
यह मृगी रोग गर्भाशय या वीर्याशयके दोषों से होती है । जब रजोधर्म बन्द हो जाता है या कम होता है तथा मैथुन न करने से वीर्य रुका रहता है, तब रज और वीर्य की तलछट जमा होकर बिगड़ जाती हैं। उस तलछट के परमाणु दिमाग में चढ़ कर मृगी पैदा करते हैं।
ऐसी मृगी होनेसे रजोधर्म बन्द रहता है, पेड़, चट्टे, गुर्दे और पेट में दर्द होता है एवं चोझासा मालूम होता है ।
नोट - ऐसी मृगी में रजोधर्म जारी करने वाली दवाएँ देना या मैथुन करना हित है।
आंतों की मृगी के लक्षण
आंतों में कीड़े पड़ने से, दूषित भाफ के परमाणु वहाँ से उठकर दिमाग़ में जाते हैं। उनसे रंगों में गांठ पैदा होकर मृगी रोग हो जाता है।
हाथ-पांवो की मृगी के लक्षण ।
यह मृगी हाथ या पैरों में दोषों के जमा हो जाने से होती है। जब बादी के कण वहाँ से उठकर दिमाग़ की तरफ जाते हैं और दिमाग को सुकेडते या खींचते हैं, तब मृगी रोग हो जाता है।
जब हाथ-पाँव आदि अंगो में साफ और चेपदार मल चिपट जाता है और वायु आ जा नही सकती, तब उस दोष और उस जगह खून में सरदी आ जाती है। उस सरदी से ठण्डी वायु पैदा हो जाती है। कभी-कभी मल की सरदी यहाँ तक बढ़ जाती है, कि छूने से वह जगह मुर्दे की देह जैसी शीतल मालुम होती है। फिर वही सर्दी वहाँ से निकल कर, पोके द्वारा, दिमाग़ में पहुंचती है और दिमाग़ के पट्टों की स्तूयत को गाढ़ी कर देती है, इससे दिमाग़ी रुकी राहें तंग हो जाती हैं । फिर रगो मै गाँठ पैदा होकर मृगी हो जाती है।
बीमार को ऐसा मालूम होता है, मानो शीतल हवा उस जगह से निकल कर और दूसरे अंगो मे होकर दिमाग की तरफ जाती है। मृगी आने के समय आँखे खुली रहतो हैं, आँसू भरभर आते हैं, मुँह का रंग काला पड़ जाता है और हाथ पैरो की उंगलियां इंठने लगती हैं। दूसरे अङ्गों में भी खिंचाव होता है। मृगी आने से पहले जॅभाई और अँगड़ाई बहुत आती है और पेशाब जल्दी-जल्दी होता है।
हकीम जालीनूस कहते हैं, कि एक लड़को को यह रोग उसकी पिंडली के दर्द से होता था। उसे मालूम होता था, कि ठण्डे तीर से दिमाग़ की ओर चढ़ते हैं। और एक रोगी को उसके पांव के अंगूठे से शीतल चीज ऊपर की ओर चढ़ती हुई मालूम होती थी।
हकीम रूफस कहते हैं, कि एक मर्द को यह रोग हाथ की पीठ से उठता था। वह कहता था कि, मेरा हाथ ऐसा शीतल हो जाता था, मानो बर्फ से दबा हुआ है।
विषैले जानवरों के काटनेसे होने वाली मिर्गी के लक्षण
विषैले जानवरों के काटने से जो मिर्गी रोग होता है, वह जानवरों के काटने के बाद होता है, यही उसकी पहचान है।
नोट – इस हालत में विषनाशक चिकित्सा करनी चाहिए।
बालकों की मिर्गी के लक्षण
इसे बहुत लोग "मसान का रोग” कहते हैं। यह मृगी गरमी के ज्वर के साथ पैदा होती है। इसके ज्वर में' खुष्की बहुत होती है, रोमकूप बन्द हो जाते हैं, पसीना क़तई नहीं आता और पेशाब सफेद होता है।
छोटे बालकों को मृगी के अधिकता से होने का यह कारण है, कि उनके दिमाग़ के भीतर जन्म से हो रुतुवते हुआ करती हैं। वे कभी गर्भ मे ही निकल जाती हैं और कभी सिर में घाव और सूजन होकर उस राह से निकल जाती हैं। अगर वे रुतुवते गर्भाशय में नहीं निकलती और पैदा नहीं निकलती तो उसको मिर्गी रोग होगा ही होगा।
Home Remedies for Epilepsy | मिर्गी का घरेलू इलाज
👉मिरगी की अवस्था में रोगी अचेतन अवस्था में हो जाता है तथा उसकी चेतना लुप्त हो जाती है। राई पीसकर चूर्ण बना लें। दौरे के समय इसे रोगी को सुंघा देने से बेहोशी दूर हो जाती है।
👉तुलसी के पत्तों के रस में थोड़ा-सा सेधा नमक मिलाकर 1-1 बूँद नाक में टपकाने और इसके पत्तों को पीसकर शरीर पर मलने या उबटन लगाने से मिरगी में लाभ होता है।
👉तलसी की पत्तियों के साथ कपूर सुँघाने से मिरगी के रोगी को होश आ जाता है।
👉रोगी के तलुओं में आक के रस की 8-10 बूँदे रोज शाम को मलें। १-२ महीने में लाभ होगा।
👉आकड़े की जड़ की छाल को बकरी के दूध में पीसकर रख लें। मिरगी के दौरे के समय इसे सुंँघाने से बेहोशी तत्काल दूर हो जाती है।
👉अकरकरा को पीसकर नाक में 2-2 बूँद टपकाएं, दौरा प्रभावहीन हो जाता है।
👉राई को पीसकर सुँघाने से मिरगी रोग के दौरों में लाभ मिलता है।
👉मिर्गी वाले रोगी के गले में 21 जायफल की माला बनाकर 1 माह तक पहना दें मिरगी रोग मिट जाता है।
👉6 ग्राम टंकणक्षार और 10 ग्राम शहद मिलाकर दिन में 4 बार चटायें तो मिरगी मिट जाती है।
👉बादाम 20 ग्राम, खरबूजे की मींगी 5 ग्राम, ककड़ी की मींगी 5 ग्राम, मिश्री 40 ग्राम, घी 20 ग्राम, दूध आधा किलो ले। इन सबको रात को पानी में भिगो दें.
👉सुबह बादामों को छीलकर मिश्री सहित दूध में मिला दें, इसके बाद कड़ाही में घी चढ़ाकर 1 इलायची की बघार दे दें और फिर सारे दूध का छोंकन लगा दें। जब आधा रह जाये तब उतार कर रोगी को पिला दें। 1 माह तक पीने से मिरगी रोग मिट जाता है।
👉1 ग्राम काली मिर्च को शहद में मिलाकर 1 मास तक चटाना चाहिए। मिरगी में लाभ होता है।
👉पीपरामूल 10 ग्राम , लाग 10 ग्राम , जायफल 10 ग्राम, पीपल 10 ग्राम, कुलिजन 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम, मालकांगनी 20 ग्राम, घोड़ावच 20 ग्राम और लौहबान 20 ग्राम लें। इन सबको कूट कर कपड़छान कर 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ प्रयोग में ले। 1 माह तक नियमित ऐसा करने से मिरगी
रोग ठीक हो जाता है।
👉3 ग्राम राई या सरसों खिलायें या गौमूत्र में पीसकर सिर पर लेप करें। १ माह तक करते रहने से मिरगी ठीक हो जाती है।
👉सौँठ, काली मिर्च, पीपल, सौवर्चल नमक और भूनी हुई हींग को समभाग लेकर पीसें। 3 ग्राम चूर्ण रोज घी के साथ खायें तो 15 दिन में मिरगी मिट जाती है।
👉मालकांगनी के तेल में कस्तूरी मिलाकर चाटने से मिरगी का दौरा ठीक हो जाता है।
👉10 ग्राम हींग को कपड़े में बाँधकर गले में रखें तो उसकी गंध से मिरगी ठीक हो जाती है।
👉एक प्याज को पीस कर को पीस कर सुंघाने से मिरगी की बेहोशी मिट जाती है।
👉मिरगी पीड़ित रोगी को कायफल, 5-5 ग्राम नक्छीकनी और कटेरी के सूखे फल तथा 20 ग्राम तम्बाकू को महीन पीसकर नित्य सुँघना चाहिए। बेहोशी मिटती है।
👉प्रतिदिन 4-5 महुवा के बीज की मींगी और 2-3 काली मिर्च पीसकर सूँघने से मिरगी रोग ठीक हो जाता है।
👉गोरखमुण्डी का चूर्ण नीबू के साथ चाटने से मिरगी रोगी को आराम मिलता है।
👉शंख का कीड़ा, काली मिर्च, हींग, कायफल, जायफल, राई, लहसुन सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीसें, उसके बाद आम के पत्ते गरम कर उनको उस पर निचोड़ कर खरल कर उड़द के बराबर की गोलियाँ बना लें। सुबह -दोपहर-शाम लें। मिरगी दौरा आना बंद हो जाता है।
👉पीपल, पीपरामूल, चव्य, चित्रक, सौंठ, त्रिफला, बायविडंग, सेंधा नमक, धनिया और जीरा सब समभाग लेकर चूर्ण बना लें। 2-2 ग्राम चूर्ण को गर्म पानी के साथ सुबह-शाम10-15 दिन तक खाना चाहिए। मिरगी रोग में आराम होता है।
👉1 नग सिरस की छाल और करंज के बीज पीसकर आँखों में अञ्जन करें तो मिरगी रोग ठीक हो जाता है।
👉ब्राह्मी, शंखपुष्पी, साठी और तुलसी का चूर्ण शहद के साथ लगभग 1 चम्मच चटाना चाहिए । इससे दौरे कम हो
जाते हैं।
👉अगस्त्य वृक्ष के पत्ते और काली मिर्च को गौमूत्र में पीसकर नासिका में चढ़ाने से मिरगी दूर हो जाती है।
👉500 ग्राम दूध में 10 ग्राम शतावरी का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन लेने से मिरगी ठीक हो जाती है।
👉ब्राह्मी का 10 ग्राम रस को 10 ग्राम शहद के साथ खाने से मिरगी दूर हो जाती है।
👉30 ग्राम तिल्ली और 90 ग्राम लहसुन को मिलाकर खाने से मिरगी रोगी को आराम होता है।
👉उल्लू की सूखी बीट का धुआँ सँधें, यह धुआँ अपस्मार (मिरगी) नाशक होता है।
👉मिर्गी रोग में अमरुद के पत्तों को उबालकर छानकर पीने से भी लाभ होता है।
👉जौ को कपडे में लपेटकर आग में जलाकर धुआँ मरीज की आँख में डालें, उस से मरीज को होश आजाता है।
उपरोक्त नुस्खे -
वैध केदारनाथ शर्मा
आरोग्य भारती, जयपुर
पुस्तक- अनुभूत चिकित्सा योग